संत श्री लक्ष्मण चैतन्य बापूजी – एक दिव्य महान विभूति
– फुलसिंग जाधव
(१६ नवंबर परम पूज्य संत लक्ष्मण चैतन्य बापूजीं का आत्मसाक्षात्कार दिवस है । इस उपलक्ष्य में विशेष लेख)
ब्रह्मलीन परम पूज्य संत श्री लक्ष्मण चैतन्यजी बापूजीका जन्म १५ अगस्त १९६८ में
महाराष्ट्र के जलगांव जिले के रावेर तहसिल के छोटेसे पाल गांव में एक बंजारा परिवारमें हुआ था । बापूजी की माताजीका नाम प्यारोबाई और पिताजीका नाम शंकर पवार है । इसी ग्राम में बापूजीने चौथी कक्षा तक की पढाई की । पूर्व जन्मोंके संस्कारोंके कारण मात्र १४ वर्ष की आयु मे ही घर छोड़कर गांव के नजदीक ही एक टिलेपर कुटिया बनाकर तपस्या आरंभ की । इस साधना काल में बापूजी १९ वर्ष तक फलाहार पर रहे और साधना की उच्चतम अनुभूतियों के कारण चार वर्ष तक मौन रहे । प.पू. बापूजी को गुरू रूप मे संत दगडूजी बापूजी मिले । साधना करते करते उन्हें नवंबर १९९५ को उस परमतत्व का साक्षात्कार हुआ ।
१ जनवरी २००० को संत महापुरूषों की उपस्थिती में बापूजीने अपना मौन विसर्जन किया । तत्पश्चात उन्होंने अपनी दिव्य अनुभव सम्पन्न वाणीसे मानव समाज को अज्ञान की निद्रा से जगाना शुरू किया । लाखों लोग बापूजी के सत्संग में आकर शुद्ध शाकाहारी व निर्व्यसनी जीवन जीने लगे । वे सत्संग के माध्यम से उपदेश देते हुये कहते थे कि, सृष्टि नियमोंसे खुद जीवो और दूसरोंको भी जीने दो । किसी भी देवीदेवताओं के नामपर निष्पाप पशु की हत्या मत करो । अहिंसा अपनाओ, अंधश्रद्धा भगावो । शरीर के सौंदर्य को महत्व न देकर चरित्र के सौंदर्य को विकसित करो । निर्व्यसनी बनकर सन्मानित जीवन जीवो । छोटे बच्चोंके बौद्धिक विकास के लिए अच्छे संस्कार करने के लिए मातापिता को विशेष आग्रह करते थे । उनकी यह भी शिक्षा थी की, गेरुएँ वस्त्र पहनना, गलेमें बड़ी बड़ी मालाएँ धारण करना, ललाटपर बड़े बड़े टीके लगाना यह साधुताकी पहचान नहीं है । भीतर की शुद्धि और दिव्य गुणोंको अपने भीतर विकसित करनेका नाम साधुता हैं । बिना चित्त शुद्धि किये साधु बन नहीं सकता ।
पूज्य बापूजी उनके पदचिन्होंपर चलनेवाले साधको के समुह को नाम दिया था –
‘‘ अखिल भारतीय चैतन्य साधक परिवार’’ । २४ जुलाई २००२ को इस अध्यात्मिक परिवार की स्थापना उन्होंने की । इस परिवार में सभी जाती के लोंगोंको प्रवेश है । इस परिवार में प्रवेश हेतु शर्त यह है कि, शुद्ध शाकाहारी एवं निर्व्यसनी बनना अनिवार्य है ।
मौन विसर्जन के बाद बापूजीने महाराष्ट्र के विभिन्न जिलों में सत्संग के माध्यम से समाज को अज्ञान, अंधश्रद्धा, व्यसन त्यागकर उन्नत जीवन जीने के लिए प्रेरित किया । महाराष्ट्र के कन्नड, छत्रपती संभाजीनगर, जलगाँव, चालीसगांव, पोहरागढ़, मंठा, बीबी, रावेर और मध्यप्रदेश में सनावद, बेडिया, बोरी, हरसुद, लाखापुर, पिपलई आदि स्थानोंपर भव्य सत्संग के कार्यक्रम हुये । इसके अलावा पंजाब राज्य में भी सत्संग कार्यक्रम हुए । हजारो – हजारो लोग अ.भा.चै.साधक परिवार के सदस्य बनते गये । और एक उन्नत जीवन जीने के लिए प्रेरित हुए ।
संत श्री लक्ष्मण चैतन्य बापूजीकी यह धारणा थी की, मैं समाज को स्वर्णमय देखना चाहता हूँ । समाज गलत खान-पान, अंधविश्वास, व्यसन से मुक्त हुए बिना समाज का विकास नही हो सकता है । अगर जीवन में अध्यात्म न रहा तो हम भौतिक उन्नती तो कर सकते है, पर आत्मिक शांती से दूर रह जायेगें । इसलिये जीवन मे आध्यात्मिकता को बहुत महत्व है ।
संत श्री लक्ष्मण चैतन्य बापूजीव्दारा संचालित संत श्री लक्ष्मण चैतन्य बापूजी आश्रम, श्री वृंदावन धाम पाल, तहसिल रावेर, जिला जलगाँव (महाराष्ट्र), संत श्री लक्ष्मण चैतन्य बापूजी आश्रम, संत श्री दगडू बापूजी धाम, श्री चारुकेश्वर आश्रम, तहसिल बड़वाह, जिला खरगोन (मध्यप्रदेश),संत श्री लक्ष्मण चैतन्य बापूजी आश्रम, सद्गुरु धाम, अंबाड़ी प्रकल्प, ग्राम तेलवाड़ी, तहसिल कन्नड़, जिला छत्रपती संभाजीनगर (महाराष्ट्र), संत श्री लक्ष्मण चैतन्य बापूजी आश्रम, नर्मदा धाम ग्राम छनेरा, तहसिल हरसूद, जिला खण्डवा ( मध्यप्रदेश),संत श्री लक्ष्मण चैतन्य बापूजी आश्रम,शबरी धाम, ग्राम अंबा तहसिल नेपानगर, जिला बुरहानपूर (मध्यप्रदेश) आदि आश्रमव्दारा तथा शेकड़ो चैतन्य साधक परिवार समितीव्दारा ज्ञान, भक्ति, सत्कर्म तथा जनकल्याण की विभिन्न गतिविधियाँ निरंतर चलती है ।
विशेषरुपसे सत्संग, हरिनाम संकीर्तन के अलावा व्यसनमुक्ति अभियान, ध्यानयोग साधना शिविर, भक्तिसभा, निःशुल्क प्राथमिक आरोग्य सेवा, युवा योग प्रशिक्षण शिविर, युवा सिक्युरिटी सेवा, गोशाला तथा मानव कल्याण हेतु अन्य सेवाएँ निरंतर चलती है ।
पूज्य बापूजीने समाज को नई दिशा देनेके लिए श्री वृन्दावन धाम आश्रम पाल में कई जनकल्याणकारी गतिविधीयोंका प्रारंभ किया । साधक परिवार के कई गांवो में साप्ताहिक ध्यान केन्द्र चलाये जाते है । महिने में १ बार तहसील स्तरपर भक्तिसभा का आयोजन होता है । जिसमें राष्ट्रीय व सामाजिक जागरण के मुद्दे, वृक्षारोपण, ग्राम स्वच्छता, व्यसन मुक्ती, आपसी भाईचारा, शिक्षण आदि विषयोंपर चर्चा करके समाज को जागृत करने का कार्य चलता है ।
आश्रम में दर्शन करने आनेवाले भक्तोंकी निवास व भोजन की व्यवस्था आश्रम समितीद्वारा की जाती है । आश्रम के आसपास के गरिब, असहाय लोंगोंका निःशुल्क प्राथमिक उपचार केन्द्र में उपचार किया जाता है । जहाँ सप्ताहमें तीन बार रावेर तहसील से डॉक्टर आकर नि:शुल्क सेवा देते है । आश्रम में वृद्धाश्रम भी है जीन बुजुर्गो को वानप्रस्थ आश्रम के अनुसार ध्यान, भजन करना होता है । वे भी आश्रम में रहकर ध्यान, भजन करते है । साधना, सत्संग , सेवा का लाभ लेते है ।
समाज का सर्वांगीण विकास एवं उत्थान और एक श्रेष्ठ , जिम्मेदार नागरिक बनने हेतु पूज्य बापूजी अपने अंतिम स्वास तक प्रयास करते रहे । बापूजीका सबसे महत्वपूर्ण सिद्धान्त यह था कि वे सत्संग आयोजकोंसे कभी भी कोई दान, दक्षिणा नही लेते थे । मानो उनका जीवन केवल और केवल प्राणीमात्र को देने के लिए ही था । यह उनकी बहुत बड़ी विशेषता थी । सत्संग एवं आश्रमव्दारा चलाये जानेवाले कार्य जनजन तक पहुँचाने हेतु चैतन्य अमृत मासिक पत्रिका शुरु की ।
प्राणीमात्र के परम हितैषी, दया, करुणा, प्रेम के महासागर परम पूज्यनीय संत श्री लक्ष्मण चैतन्य बापूजी एक दिव्य महान विभूति थी । वे २५ दिसंबर २००९ को ब्रह्मलीन हुए । अपने अल्पकाल में उन्होंने समाज को बहुत कुछ दिव्य ज्ञान देकर सन्मानित जीवन जीने का रास्ता बताया । सेवा, सत्संग, ज्ञान, भक्ति को अपने जीवन का हिस्सा बनाकर आज लाखों भक्त उनके बताए हुए मार्गपर दृढ़ता से चल रहे है ।
नही रुकी हैं – मानव कल्याणकारी सेवाएँ
संत श्री लक्ष्मण चैतन्य बापूजी ब्रह्मलीन होने के पश्चात उनके परम शिष्य गोपाल चैतन्य बाबाजीने अपनी सोलह साल की उम्र में ही पूज्य बापूजीकी शरण ली थी । उन्होंने पूज्य बापूजी से नैष्ठिक ब्रह्मचर्य की दीक्षा लेकर ९ साल तक मौन साधना करके अपने सद्गुरु एवं परमात्मा की असीम कृपा के पात्र बनने कारण वे गादीपति बने । वर्तमान में संत श्री गोपाल चैतन्य बाबाजी पूज्य संत श्री लक्ष्मण चैतन्य बापूजी के जनकल्याणकारी उद्देशोंको लेकर आगे बढ़ रहे है ।
बंजारा समाज का सौभाग्य है कि पूज्य बापूजी जैसे संत हमे मिले । संत श्री लक्ष्मण चैतन्य बापूजी जैसी महान विभूतियाँ कभी कभी इस धरतीपर अवतरित होतीे है ।
फुलसिंग जाधव
छत्रपती संभाजीनगर (महाराष्ट्र)